पटना। अपने से आधी से भी कम उम्र की जूली के साथ 'लिव इन रिलेशनशिप' में जीवन गुजार रहे पटना विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रो. मटुकनाथ चौधरी [लवगुरु] को निचली अदालत ने झटका दिया है। पटना जिला न्यायालय के मजिस्ट्रेट अनिल कुमार राम ने 'लवगुरु' को उनके 'पहले प्यार' [धर्मपत्नी आभा चौधरी] को भरण-पोषण के लिए प्रत्येक महीने पंद्रह हजार रुपये देने का निर्देश दिया है।
अभी तक प्रोफेसर साहब अपनी पत्नी [आभा] के उत्तरदायित्व से बच रहे थे। मजिस्ट्रेट ने फिलहाल अंतरिम फैसला सुनाया है। जीवनयापन भत्ते की राशि में बढ़ोतरी की भी संभावना है। पत्नी को मुकदमे में आए खर्च की राशि मिल सकती है।
गुरु जी की धर्मपत्नी आभा निर्वासित जिंदगी जी रही हैं। वे 2007 से पति से कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। छह महीने से उनका मामला आर्डर पर चल रहा था। अब फैसला सुना दिया गया है। यह घरेलू हिंसा कानून में नए तरह का फैसला है।
आभा को इस बात का मलाल था कि जूली के आगे गुरु जी सबकुछ भूल गये। उन्हें अलग-थलग जिदंगी जीने के लिए बाध्य कर दिया गया। आभा चौधरी की वकील श्रुति सिंह बताती हैं, जब पटना विश्वविद्यालय के प्रो मटुकनाथ पर मुकदमा दायर किया गया था, उस समय उनका वेतन 44 हजार रुपये प्रतिमाह था। इसमें बढ़ोतरी होती गयी। अभी वे प्रतिमाह करीब सवा लाख रुपये पाते हैं।
ध्यान रहे कि पहले गुरुजी को निलंबित किया गया। उनका मकान भी खाली कराया गया। फिर उन्हें तीन वषरें तक नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। हालांकि आभा को अब भी भरोसा है कि देर-सबेर गुरुजी घर लौट आएंगे।
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