Saturday 1 February 2014

आगे बढ़ने की दौड़ बिगाड़ रही पुरुषों की सेहत

महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए भले ही सरकार फिक्रमंद हो, लेकिन पुरुषों के मामले में वह पूरी तरह उदासीन है। अनियमित दिनचर्या और भागदौड़ भरी जिंदगी कामकाजी युवाओं की सेहत पर भारी पड़ रही है। बावजूद इसके पुरुषों के स्वास्थ्य जांच की जरूरत ही नहीं समझी जाती। यूरोलॉजी सोसायटी ऑफ इंडिया पिछले पांच साल से देश की स्वास्थ्य योजनाओं में पुरुषों के लिए एक योजना शामिल करने की बात कह रही है। ताकि महीने में एक बार पुरुषों की सेहत की जांच सुनिश्चित हो सके। लेकिन प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं मिली है।

एम्स के यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. टीएन डोगरा ने बताया कि एम्स में बीते पांच साल में मूत्र संबंधी विकार के 40 फीसदी पुरुष मरीज बढ़े हैं। इनमें प्रोस्टेट में पथरी, मूत्रसंबंधी परेशानी और प्रोस्टेट कैंसर जैसी समस्याएं देखी गई हैं। प्रोस्टेट बड़ा होने या फिर इसमें पथरी की समस्या लेकर पहले लोग 60 साल की उम्र के बाद डॉक्टरों के पास आते थे, लेकिन अब यह समस्या 40-50 के बीच देखी जा रही है। तनाव, डायबिटिज, किडनी की परेशानी सहित कैंसर के मामले भी पुरुषों 60 फीसदी बढ़े हैं।

यहीं नहीं महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में आत्महत्या की प्रवृति भी बढ़ी है। मतलब महिलाओं की अपेक्षा पुरुष तनाव के अधिक शिकार हो रहे हैं। आरएमएल के यूरोलॉजिस्ट डॉ. राजीव सूद ने बताया कि महिलाओं की तरह पुरुषों में एक उम्र के बाद पुरुष हार्मोन ‘मेल टेस्टोन’ की मात्रा बढ़ती  है। इस अवस्था को एंड्रोपॉज कहते हैं, जिससे प्रोस्टेट ग्रन्थि के बढ़ने व मूत्र संबंधी परेशानियां होती हैं। पहले की अपेक्षा अब पुरुषों में एंड्रोपॉज की स्थिति कम उम्र में देखी जा रही है।

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http://www.livehindustan.com/news/desh/today-news/article1-story-39-329-397034.html

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