नई दिल्ली वरिष्ठ संवाददाता। दिल्ली में नाबालिग लड़कियों के अपहरण के मुकदमे दर्ज कराने की एक परंपरा बन गई है। बेटी के प्रेम संबंधों से नाखुश परिजन कानून का दुरुपयोग करते हैं और बेटी के मनमर्जी से जीवनसाथी चुनने के फैसले को अपराध साबित करने पर तुले रहते हैं। यही वजह है कि इस तरह के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। मुश्किल यह भी है कि हर मामले में शिकायतकर्ता अपनी बेटी को नाबालिग साबित करने पर तुले रहते हैं।
जबकि वास्तविकता में लड़की बालिग होती है। ऐसे मामलों में अदालतों को स्पष्ट नजरिया अपनाना चाहिए। रोहिणी कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी लड़की के अपहरण के एक आरोपी को बरी करते हुए की है। रोहिणी स्थित एडशिनल सेशन जज कामिनी लॉ की अदालत ने इस मामले में बेटी के अपहरण की झूठी शिकायत कराने वाली महिला के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। साथ ही इस मामले के जांच अधिकारी एएसआई अब्बास रजा की जांच प्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं।
अदालत ने जांच अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश संयुक्त पुलिस आयुक्त को दिए हैं। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी की जिम्मेदारी होती है कि वह तथ्यों को परखने के बाद ही मामले को आगे बढ़ाए। इस मामले में जांच अधिकारी ने लड़की की सही उम्र भी जांचने की जहमत नहीं उठाई। लड़की 18 साल की थी और परिवार दावा कर रहा था कि वह नाबालिग है। अगर जांच अधिकारी सही तफ्तीश करता तो मुकदमा आगे नहीं बढ़ता।
अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने अपनी सुविधा के हिसाब से कानून का दुरुपयोग किया और एक 23 वर्षीय युवक को झूठे मुकदमे में फंसा दिया। धर्म अलग था इसलिए थी आपत्ति अभियोजन पक्ष के अनुसार लड़की की मां ने 27 अप्रैल, 2011 को शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी बेटी को यहां सुल्तानपुरी से एक युवक ने अगवा कर लिया है। लड़की की मां ने दावा किया था कि उनकी बेटी उस वक्त 17 साल की थी।
कुछ दिन बाद लड़की का पता चल गया और युवक को गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में अदालत में लड़की ने बयान दिया कि वह अपनी मर्जी से युवक के साथ गई थी क्योंकि वह उससे प्यार करती है। उसने कहा कि अलग अलग धर्म का होने के कारण उसके माता-पिता लड़के से उसकी शादी के खिलाफ थे।
Original NEWS Source:- http://www.livehindustan.com/news/location/rajwarkhabre/article1-story-39-0-376871.html&locatiopnvalue=4
जबकि वास्तविकता में लड़की बालिग होती है। ऐसे मामलों में अदालतों को स्पष्ट नजरिया अपनाना चाहिए। रोहिणी कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी लड़की के अपहरण के एक आरोपी को बरी करते हुए की है। रोहिणी स्थित एडशिनल सेशन जज कामिनी लॉ की अदालत ने इस मामले में बेटी के अपहरण की झूठी शिकायत कराने वाली महिला के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। साथ ही इस मामले के जांच अधिकारी एएसआई अब्बास रजा की जांच प्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं।
अदालत ने जांच अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश संयुक्त पुलिस आयुक्त को दिए हैं। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी की जिम्मेदारी होती है कि वह तथ्यों को परखने के बाद ही मामले को आगे बढ़ाए। इस मामले में जांच अधिकारी ने लड़की की सही उम्र भी जांचने की जहमत नहीं उठाई। लड़की 18 साल की थी और परिवार दावा कर रहा था कि वह नाबालिग है। अगर जांच अधिकारी सही तफ्तीश करता तो मुकदमा आगे नहीं बढ़ता।
अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने अपनी सुविधा के हिसाब से कानून का दुरुपयोग किया और एक 23 वर्षीय युवक को झूठे मुकदमे में फंसा दिया। धर्म अलग था इसलिए थी आपत्ति अभियोजन पक्ष के अनुसार लड़की की मां ने 27 अप्रैल, 2011 को शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी बेटी को यहां सुल्तानपुरी से एक युवक ने अगवा कर लिया है। लड़की की मां ने दावा किया था कि उनकी बेटी उस वक्त 17 साल की थी।
कुछ दिन बाद लड़की का पता चल गया और युवक को गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में अदालत में लड़की ने बयान दिया कि वह अपनी मर्जी से युवक के साथ गई थी क्योंकि वह उससे प्यार करती है। उसने कहा कि अलग अलग धर्म का होने के कारण उसके माता-पिता लड़के से उसकी शादी के खिलाफ थे।
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