Tuesday, 15 October 2013

Denying-sex-to-spouse-a-ground-for-divorce-delhi-high-court

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। शारीरिक अंतरंगता किसी भी विवाह बंधन का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। ऐसे में कोई महिला अपने पति से शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार करती है तो यह बात उत्पीड़न की श्रेणी में आती है। यह तलाक का ठोस आधार भी है। यह टिप्पणी करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को पत्नी से तलाक लेने की अनुमति प्रदान की है।
न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति नजमी वजीरी की खंडपीठ ने मामले में महिला द्वारा निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया है। निचली अदालत ने महिला के पति को इस आधार पर तलाक की अनुमति दी थी कि महिला पति से शारीरिक संबंधों से इन्कार व परहेज करती थी। महिला ने निचली अदालत के निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय ने फैसले में कहा कि पति व पत्नी आठ-नौ साल से एक-दूसरे से अलग रह रहे हैं। पत्नी ने पति पर अपने परिवार से अलग होने के लिए दबाव डाला। बात न मानने पर पत्नी ने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से भी इन्कार कर दिया। इस पर पति ने वर्ष 2007 में निचली अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल की। निचली अदालत ने महिला को वर्ष 2009 में एक मौका दिया था कि रिश्ते की कड़वाहट को दूर कर पति-पत्नी फिर से साथ रहें। महिला पति के पास तो आई मगर उसने शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार कर दिया। ससुराल आने के बाद भी महिला गुजरात में महीनों तक अपने परिजनों के घर रहने जाती थी। यह व्यवहार क्रूरता की श्रेणी में आता है।
खंडपीठ ने महिला के पति की उस दलील को भी स्वीकार किया, जिसमें उसने कहा था कि महिला ने उस पर उसकी महिला रिश्तेदार से अवैध संबंधों का आरोप लगाया, यह उसके लिए मानसिक उत्पीड़न से कम नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि ऐसे में निचली अदालत ने व्यक्ति को उसकी पत्नी से तलाक की अनुमति देकर कुछ गलत नहीं किया।

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